Tuesday, June 01, 2010

सगाई की सतरंगी सफ़र

यौवन के दहकते दलहिज पर कदम रखते ही आँखों में तैरने लगते है, भावी जीवन साथी की कल्पना के इन्द्रधनुषी रंग ! यह रंग तब जायदा रंगीन हो जाता है जब पूरी होती है सगाई की रस्म ! जी हँ सगाई की ही रस्म से तो जिंदगी में एक संतुलन की शुरुआत होती है , जो आने वाले दिनों में एक दुसरे के दिलो को छुने वाली हर सुख दुःख का संतुलित बटवारा कर जीवन के बहार को बनाये रखता है !
सगाई जिसे कही ढाका, कही रोका, कही आशीर्वाद या नीरबंध तो, कही मंगनी भी कहा जाता है ! एक ऐसा रिवाज है जिसके पूरा होने के बाद नवयौवन की जिंदगी जज्बातों से भर जाती है ! एक ऐसा जज्बात जो बात बात में सिर्फ और सिर्फ अपने होने वाले सजाना के लिए बजना चाहता है !सगाई के बाद संसार रूपी सागर में दाम्पत्य के नौका में बैठकर चलने की खाव्हिश लिए सुर्खे गुलाबी हो चुके चेहरे और शर्मो हया में डूबते उतरते आखो में रस्म के महत्व और सवेदनशीलता को बाया करती है ! एक ही पल में दो अनजान युवा दिल रस्म की रस्सी में बंध कर एक दूजे के लिया धरकने लगते है !पिया के पहली छुअन वाला यह खुबसूरत पल नये जोड़ो के जेहन में एक ऐसा यादगार लम्हा बन जाता है जो कभी इन्हें तनहा नहीं रहने देता है इस रस्म में नए जोड़ो के दौओरा एक दुसरे के अनामिका में अंगूठी पहनायी जाती है! अनामिका में अंगूठी पहनाने का खास मकसद यह है की अनामिका की नसे सीधे दिल से जुडी रहती है ,ये बाते कहती है जर्नलिजम की दूसरी बर्षे की छात्रा रूपा !जिसकी सगाई अभी अभी हुई है ! वही पटना विशविधाल्या की छात्रा अनामिका कहती है की सगाई और शादी के बीच कुछ समय मिलना चाहिए ताकि दोनों एक दुसरे को समझ सके !
लेकिन सगाई की सतरंगी अंगूठी अपने अन्दर एक सुनहरा इतिहास छुपा कर रखी है सन १४७७ इसबी में सगाई की अंगूठी पहना का शादी का प्रस्ताव रखने की परम्परा का जनम हुआ !सब से पहले आस्ट्रिया के अर्केदुके मक्सिमिल्याने ने मैरी ऑफ़ बरगंडी को हीरे की अंगूठी भेट की थी ! जिसे वह शादी के प्रतिक के रूप में दिया था !लेकिन बदलते वक्त के साथ आज यह फैशन का रूप ले लिया ,पर नहीं बदला तो इसका सवरूप कयोकी आज भले ही यह फैशन बन गया हो पर आज भी लोग इसे शादी पक्की होने का प्रतिक ही मानते है!
सगाई की रस्म के अतीत में झाके तो पायेगे की पहले घर के बड़े बुजुर्गे आपस में चाँदी का रूपया बदलकर शादी तय कर लेते थे ,जिसे लोग सगाई कहते थे ! इस रस्म के बाद भी लड़का लड़की एक दुसरे को न के बरावर ही देख पते थे ! लेकिन समय के साथ सगाई के रस्म में भी काफी परिवर्तन हुआ है !
७० के दशक के आसपास सगाई की रस्म के दौर में कुछ बदलाव आया !यह वह दौर था जिसमे चाय की ट्रे का महत एकदम से बढ़ गया !चाय के पियाला का सहारा लेकर लड़की कापती कलायो से लड़के को चाय का प्याला देती थी ,और लड़का चाय के पियाला को भूल लड़की की शर्मसे झुकी पलकों में डूब जाता था !फिर सगाई की रस्म पूरी होती थी !
बैंक ऑफिसर विनोद सिन्हा की पत्नी इंदु सिन्हा जो की एक कुशल गिर्हनी है बताती है की हमारी शादी हमारे बड़े भाई साहेब ने तय किया था ! मै आपने होने वाले पति को शादी के बाद ही देख पायी थी ! लेकिन उनके घर वालो को चाय पिलाने वाली रस्म अदायगी मैंने की थी !
पेशे से शिक्षिका विमला जी इस सिलसिला को आगे बढ़ी हुई कहती है ,जब मुझे देखने पहली बार मेरे पति आये थे,और जब मै उनके सामने चाय का पियाला पेश किया था तो हमारे हाथ पैर काप रहे थे !लेकिन इनके सरल सुअभाव ने मेरी सारी डर ही दूर कर दिया ! फिर एक महिना बाद हमरी सगाई हुई !इस दौरान हमारी एक दो बार फ़ोन से बात हुई थी वह भी भाभी के सामने !
लेकिन ८० के दशक तक पहुचते पहुचते और चीजो की तरह संस्कृति ने भी सुपरफास्ट स्पीड से आगे बढ़ाना शुरू कर दिया !शादियों में लव मैरिज का ट्रेंड खुल कर उभरा !और फिर लव कम अरेंज मैरेज का ट्रेंड पोपुलर हो गयी !
मिया बीवीराजी तो किया करेगा काजी वाली सिस्थी से माता पिता का खुलम खुला सामना होने लगा !माहौल और संबंधो में आने वाला इन परिवर्तनों ने सगाई की रस्म को भी प्रभावित किया !
एक प्रतिष्ठित संस्था में कम कर रहे मनीष ने कहा की मेरी शादी लव मैरिज हुआ था ,वो भी मंदिर में इसी करण रशमो की गहराई को हम ठीक से समझ नहीं पाए है! पर हँ इतना जरुर है की पुरखो के दुआर बनाया गया रस्मे रिवाजो की अहमियत अवश्य होती है !शायद इन रशमो के माध्यम से लड़का और लड़की में एक परिपक्ता और समझ आती है !इस बात को हम महसूस करते है !
टिस्को में कार्यरत और लव कम अरेंज मैरेज की गवाह बनी आरती ओझा का कहना है की समय के साथ जब इतना कुछ बदल गया तो रस्म इस बदलाव से कैसे अछुती रह सकती है !वह जमाना लद गया जब लडकिय सगाई के नाम पर नर्वस होती थी !पहले लड़की को शोपीस की तरह बैठा दिया जाता था ,कम बोलना ,नजरे नीची रखना जैसे न जाने कितनी ही हिदायते घर के बड़े देते थे !लेकिन आजकल की लड़किया आपनी सगाई पर बेहिचक मुस्कुराते हुए मिलती है !
वही सिविल सेवा की तैयारी कर रही विभा के अनुसार सगाई की रस्म को लोग धीरे धीरे मिनी मैरेज बनाते जा रहे है !जिसके मस्ती भरी रंग में सभी डूब जाना चाहते है !आज सगाई लड़का और लड़की के लिए सिर्फ दोस्ती का नया मार्ग ही नहीं बनता है ,बल्कि दो परिवारों के बीच के संबंधो को एकजुटता प्रदान करता है !संकोच और संकीर्णता पूरी तरह से इस रस्म के दौरान ख़त्म हो चुकी है !यही करण है की लड़के और लड़की खुद आपनी सगाई में नाचते गाते नजर आते है!
मनीषा जो पेशे से मीडियाकर्मी है सगाई की बात सुनते ही उदास हो जाती है !फिर यादो को बजावाते ताजा करते हुए बताती है की चुकी मैंने अन्तेर्जतिये विवाह किया है !इसलिए हमारी सगाई नहीं हो पायी !लेकिन पति दुओरा पहनाई गई अंगूठी ही मेरे लिए सगाई की अंगूठी थी !जिसका साक्षी सिर्फ हम थे !रस्मो का क्या है वो तो आपके मन और जेब के उपर निर्भर करता है !इससे जायदा जरुरी है रस्मो से जुडी वचनवधता ताकि जीवन की नैया समुन्द्र रूपी संसार में सुखी पूर्वक तैर सके !
इसलिए कहते है की सगाई सिर्फ मौज मस्ती के लिए नहीं बल्कि एक नए जोड़े की गिरहस्ती की पहली शुरुआत भी करता है !यही करण है की सगाई एक महत्पूर्ण रिश्ते की मजबूत बुनियाद तय करती है !
इतने बदलावों के बाबजूद यह आवश्यक है की सगाई की रस्मो के दौरान सभी संबंधो की सीमाओं का धयान रखा जाय क्योकि कभी कभी छोटी सी गलती किसी बड़े मनमुटाव का करण बन सकती है !

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